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जन्म एक पुस्तकालय का

      बहुत दिनों से हमारे हृदय में यह इच्छा थी कि कोई ऐसी संस्था हो, जहाँ हम अपना खाली समय लगाकर कुछ ज्ञान अर्जित कर सकें। परन्तु बहुत दिनों तक यह इच्छामात्र ही बनी रही। अचानक दिमाग में आया कि बरहरवा-जैसे स्थान में एक लाइब्रेरी होने से हमारी इच्छा की पूर्ति हो सकती है। इसलिए हम कुछ लड़कों ने मिलकर एक मिटिंग कर “पैन्थर्स क्लब” की स्थापना की।

      य़ह क्लब अब पुरानी पुस्तकें जुटाने में लगा। फलस्वरूप कुछ ही दिनों में इसके पास पुस्तकों की संख्या 600 तक पहुँच गयी। अब इसके समक्ष जो समस्या लाइब्रेरी के लिए आयी, वह थी स्थान की। लेकिन इसे ढूँढ़ने में यह संस्था कामयाब रही। यह स्थान अस्पताल के निकट एक पुराने भवन में बाँयी तरफ की कोठरी में है। इसी कोठरी में 600 पुस्तकों के साथ 5 जून 1983 को लाइब्रेरी की स्थापना की गयी, जिसका नाम “पी.सी. लाइब्रेरी” रखा गया।

      इस पुस्तकालय की ओर बरहरवावासियों का झुकाव कम ही देखने को मिलता है। शायद वे इसके अभाव में रहकर अब वैसे ही ढाँचे में ढल गये हैं। खैर, पुस्तकालय-प्रेमियों के लिए आज भी यह संस्था उनकी सेवा में बरकरार है। वर्तमान में, नयी-पुरानी पुस्तकों की संख्या लगभग 1,000 है। आशा है कि सभी इसमें रुचि लेते हुए अपनी इस संस्था को अग्रसर करने में योगदान करेंगे।

                                                            - देवनाथ राय

                                                                  अध्यक्ष

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दो भाई मोटर-साइकिल से कहीं जा रहे थे। पानी बरसने लगा। दोनों एक घर के सामने रुके और बड़ा जाकर दरवाजा खटखटाया। एक व्यक्ति ने दरवाजा खोलते हुए पूछा, “कौन हो तुमलोग?”

“जी, मेरा नाम राम है और यह मेरा भाई लक्ष्मण है।” बड़े भाई राम ने कहा, “मेरे और भी दो छोटे भाई भरत और शत्रुघन हैं।”

“तब तो जरूर आपके पिता का नाम दशरथ होगा?”

“जी हाँ, पर आपको कैसे मालूम?”

“वास्तव में मेरा नाम रावण है।” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया।

                                                - मुरारी केडिया