आज के इस प्रगतिशील वैज्ञानिक युग में हस्तलिखित पत्र! हँसी आ रही है न?
हो सकता है, यह बचकाना हरकत हो। अथवा इसके आर्थिक कारण हो। पर जो कुछ भी हो, यह चन्द किशोर हृदयों के उत्साह का परिणाम है। यह जो 'किशोर पताका' आपके हाथों में है, यह घर-परिवार, समाज और स्कूल की कशमकशों के मध्य फड़फड़ाती हुई उन किशोर आत्माओं का दर्पण है, जो समाज की प्रचलित रीतियों से ऊपर उठकर विश्व को देखना चाहते हैं... लीक से हटकर कुछ कर दिखाने की लालसा रखते हैं और अपने अन्दर छुपे हुनर को आपके सामने रखना चाहते हैं।
कहा जाता है कि किशोरावस्था ही जिन्दगी के सफर का वह मोड़ है, जहाँ से मानव या तो सृजन का रास्ता चुनता है, या फिर विध्वंस का। आज हम खड़े हैं उसी मोड़ पर। जरुरत है अपने गुरूजनों से आशीर्वादों की और ढेरों गलतियों के रहते हुए भी यह कहने का साहस कर रहे हैं-