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“देह में शक्ति नहीं, हृदय में उत्साह नहीं, मस्तिष्क में प्रतिभा नहीं- क्या होगा रे इन जड़ पिण्डों से? मैं हिला-डुला कर इनमें स्पन्दन लाना चाहता हूँ। इसलिए मैंने प्राणान्त प्रण किया है। वेदान्त के इस अमोघ मंत्र से उन्हें जगाऊँगा-

‘उत्तिष्ठत् जाग्रत्’

इसी अभयवाणी को सुनाने के लिए ही मेरा जन्म हुआ है। तुमलोग इस काम में मेरे सहायक बनो।”

 

-स्वामी विवेकानन्द