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पर 2 दिसम्बर 1942 को इटालियन वैज्ञानिक एनरिको फार्मि के नेतृत्व में नियंत्रित प्रतिक्रिया सफलता के साथ घट गयी। सांकेतिक भाषा में यह संवाद राष्ट्रपति भवन तक पहुँचा, "इटालियन नेवीगेटर अन्ततः बन्दरगाह तक पहुँच ही गया।"

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दूसरी ओर एलमोस में अमेरीकी वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर के नेतृत्व में असली बम बना लिया गया। पहला परीक्षणमूलक बम विस्फोट हुआ 16 जुलाई, 1945 को एक मरूभूमि में। पहले अत्यन्त उज्जवल प्रकाश दीपशिखा के समान उठा और उसके मिनट भर के बाद प्रचण्ड ध्वनि। एक प्रत्यक्षदर्शी वैज्ञानिक के शब्दों में, "...कौतूहलवश निषेध आज्ञा के बावजूद मैंने काला चश्मा उतार फेंका। देखा, चारों तरफ दोपहर के तरह आलोक। आँखें चौंधिया गयीं। मेढ़क के विशाल छाते की तरह धुएं का स्तूप तीव्रता से 40,000 फीट की ऊँचाई तक जा पहुँचा।...."

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प्राशान्त महासागर के मेरियाना द्वीप-समूह से तीन अमेरीकी सुपर कार्टेस विमान गर्जन के साथ आसमान की ओर उड़ चले। सुबह-सुबह का मनोरम समय था। 'इनोलो-गे' विमान में, जिसका कि चालक कर्नल पॉल टिबेट्स था, छिपा था 'लिट्ल बॉय'। यह छद्म नाम था उस परमाणु बम का। दूसरे जहाज में अध्ययन के लिए वैज्ञानिक तथा तीसरे में फोटोग्राफर थे। यह दिन था- 6 अगस्त' 1945 का।

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हिरोशिमा में 8 बजकर 15 मिनट हो रहे थे। कुछ ही क्षणों पहले एक अमेरीकी बी-59 विमान यहाँ से लौटकर गया था। सायरन द्वारा 'ऑल क्लियर' का संकेत दे दिया गया था। सब कुछ शान्त था। मजदूर काम में लगे थे। अधिकांश छात्र-छात्रायें आग लगने पर फैले नहीं (फायरब्रेक)- इसके लिए कीमती सामानों को शहर से बाहर खाली स्थान पर पहुँचाने में व्यस्त थे।

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मात्र तीन विमानों को आते देख नागरिकों ने समझा, अनुसन्धान के लिए आये होंगे। किसी ने विशेष ध्यान नहीं दिया। तीनों विमान हिरोशिमा के ऊपर आये।

सहस्त्रों सूर्य एक साथ चमक उठे! बहुतों, कुछ समझने के पूर्व ही खाक हो गये। कोई भी निरापद स्थान में छुप नहीं पाया था।

पलक झपकते ही पुराने हिरोशिमा का नामो-निशान इस पृथ्वी पर से मिट गया।

.....और इसमें समय लगा था- 1 सेकेण्ड के 10 लाख भाग के एक भाग से भी कम!

     

                                                                  - जयदीप दास