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कहानी

सजा

इतिहास की घण्टी चल रही थी। चन्द्रकान्त बाबू बोर्ड पर कुछ लिख रहे थे और सभी छात्र सिर झुकाये चुपचाप उतारे जा रहे थे। क्लास में बिलकुल सन्नाटा छाया था। तभी चपरासी गंगा ने क्लास में कदम रखा, “सर....... ।

      चन्द्रकान्त जी का ध्यान टूटा।

      “क्या बात है?” उन्होंने चपरासी से पूछा।

      अब तक सबों की दृष्टि गंगा पर पड़ चुकी थी। असमय चपरासी का आ जाना उत्सुकता की बात होती ही है। पता नहीं क्या सूचना है?

      “सर, शेखर और सलीम को हेडमास्टर साहब बुला रहे हैं।”

      शेखर और सलीम दोनों के होश उड़ गये। चेहरा पीला पड़ गया। जिस किसी के नाम से हेडमास्टर साहब का बुलावा आता है, उसका यही हाल होता है। हेडमास्टर रामनारायण सिंह इस स्कूल के प्रत्येक छात्र के लिए आतंक हैं। बिलकुल गम्भीर। उनकी आँखें बाज की तर्ह थीं। जिस पर उनकी नजर पड़ जाती- उसका पसीना छूटने लगता और जिसे वे उँगली उठाकर वे बुलाने लगते- उसका क्या हाल होता है, यह तो वही बता सकता है।

      “कौन है शेखर और सलीम?” जानने के बावजूद चन्द्रकान्त जी ने पूछा।

दोनों काँपते पैरों पर खड़े हो गये।

“जाओ।” कहकर चन्द्रकान्त जी ऐसे मुस्कुराये, जैसे कह रहे हों, “जाओ बच्चू, कसाई के हाथों में तो पड़ ही चुके हो।”

सारी कक्षा की नजर शेखर और सलीम पर उठी थी। दोनों चुपचाप बाहर निकले।

गंगा खट-खट अपने प्लास्टिक के जूते बजाते हुए आगे चल पड़ा और पीछे-पीछे दोनों मरियल कदमों से चलने लगे।

आज प्रार्थना में उन्होंने जरा भी हलचल नहीं की थी। टीचर्स घण्टी के पहले बरामदे में भी वे उछले-कूदे नहीं थे। फिर? किसी ने शिकायत तो नहीं किया? किसने किया होगा?

                                   

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