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सोलहवाँ प्रयास

प्रख्यात लेखक जूले वर्न फ्राँस की एक कम्पनी में नौकरी करते थे। नौकरी छूटने पर बेकारी के समय उन्हें पुस्तकें पढ़ने का चस्का लग गया। सैकड़ों किताबें पढ़ने के बाद उन्होंने सोचा कि क्यों न एक किताब खुद लिखी जाय! अन्त में उन्होंने एक पुस्तक प्रारम्भ की: 'गुब्बारे में पाँच सप्ताह'। पुस्तक बहुत ही रोचक और रोमांचक बन गयी। खुशी-खुशी वर्न इसे एक प्रकाशक को दे आये। प्रकाशक ने इसे बेकार समझकर वापस कर दिया। इतना ही नहीं, एक के बाद एक पन्द्रह प्रकाशकों ने रचना वापस कर दी। निराश होकर पाण्डुलिपि फाड़कर जला देने चले। ऐन मौके पर उनकी पत्नी ने रोक दिया और कहा- "दिल छोटा न कीजिये। यह किताब अवश्य छपेगी। आप धर्य रखें। शायद सोलहवाँ प्रकाशक इसे पसन्द कर ले।" पत्नी के आग्रह पर वर्न ने रचना सोलहवें प्रकाशक को भेज दी, परन्तु यह भी ठान लिया कि इस बार वापस आने पर चूल्हे में अवश्य झोंक देंगे। पर कुछ ही दिनों बाद प्रकाशक का स्वीकृति पत्र मिला। 1872 में यह पुस्तक छपकर बाजार में पहुँची, तो हाथों-हाथ बिक गयी। फिर तो वापस करने वाले प्रकाशक भी नयी रचनाओं के लिए गिड़गिड़ाने लगे। कुछ ही वर्षों में जूले वर्न की पुस्तकों ने धूम मचा दी। वे शीघ्र ही विश्वप्रसिद्ध हो गये।